शनिवार, 21 मई 2011

पापनाशिनी, पुण्यप्रदायिनी गंगा



(पूज्य बापू जी के सत्संग प्रवचन से)
(गंगा जयंतीः 10 मई 2011)
जैसे मंत्रों में ॐकार, स्त्रियों में गौरीदेवी, तत्त्वों में गुरुतत्त्व और विद्याओं में आत्मविद्या उत्तम है, उसी प्रकार सम्पूर्ण तीर्थों में गंगातीर्थ विशेष माना गया है। गंगाजी की वंदना करते हुए कहा गया हैः
संसारविषनाशिन्यै जीवनायै नमोऽस्तु ते।
तापत्रितयसंहन्त्र्यै प्राणेश्यै ते नमो नमः।।
'देवी गंगे ! आप संसाररूपी विष का नाश करने वाली है। आप जीवनरूपा है। आप आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक तीनों प्रकार के तापों का संहार करने वाली तथा प्राणों की स्वामिनी है। आपको बार-बार नमस्कार है।'
(स्कंद पुराण, काशी खं.पू. 27.160)
जिस दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई वह दिन गंगा जयंती (वैशाख शुक्ल सप्तमी) और जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुई वह दिन 'गंगा दशहरा' (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी) के नाम से जाना जाता है। इन दिनों में गंगा जी में गोता मारने से विशेष सात्त्विकता, प्रसन्नता और पुण्यलाभ होता है। वैशाख, कार्तिक और माघ मास की पूर्णिमा, माघ मास की अमावस्या तथा कृष्णपक्षीय अष्टमी तिथि को गंगास्नान करने से भी विशेष पुण्यलाभ होता है।
मैं हरिद्वार कुंभ पर्व पर गंगाजी के किनारे सुबह-सुबह टहलने जाता था। गंगाजी की एक धारा पार करके दूसरी धारा के बीच में एक टापू है, उस पर टहलता था। एक दिन मुझे वहाँ एक साधू मिले, बोलेः "बापू जी ! मैं पहले आपके आश्रम में भोजन करने आता था और मुझे आश्रम की कढ़ी बहुत अच्छी लगती थी।..." बातें करते-करते उसने बताया कि "मैं एक रात को गंगाजी के किनारे बैठा था तो लगभग हजार मीटर ऊपर से एक प्रकाश का पुंज नीचे आया और गंगाजी के जल में फैंककर विलय हो गया।"
मैंने पूछाः "दिन कौन सा था?"
उसने कहाः "15 मार्च (2010), सोमवती अमावस्या थी।"
अपने शास्त्रों में तो बताया ही गया है कि सोमवती अमावस्य़ा, रविवारी सप्तमी, मंगलवारी चतुर्थी और बुधवारी अष्टमी इन तिथियों पर किये गये जप, तप, मौन, ध्यान का प्रभाव अक्षय होता है। इन सभी दिनों-त्यौहारों पर तथा कुंभ पर्व पर स्नान आदि करने से मानवीय जीवन में आध्यात्मिक ओरा (आभा) का संचार होने की व्यवस्था है।
स्रोतः लोक कल्याण सेतु, पृष्ठ संख्या 11, अप्रैल 2011, अंक 166
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