शनिवार, 21 मई 2011

नृसिंह जयंती पर लें शुभ संकल्प



(नृसिंह जयंती 16 मई 2011)
भगवान नृसिंह की कथा में तीन प्रतीक मिलते हैं। ये तीन पात्रों से जुड़े हैं – हिरण्यकशिपु अहंकार से भरी बुराई का प्रतीक है, प्रह्लाद विश्वास से भरी भक्ति का प्रतीक है और दुष्ट का वध करने वाले भगवान नृसिंह भक्त के प्रति प्रेम का प्रतीक हैं। अब सवाल यह है कि हम अपने जीवन को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं ?यदि अहंकार और बुराई की ओर ले जायेंगे तो निश्चित ही अंत बुरा है। इसलिए विश्वास से भरे भक्तिरूप प्रह्लाद को जीवन में उतारना होगा। प्रह्लाद से होते हुए आस्था व विश्वास का रास्ता भगवान तक जाता है। विकारों, आसक्तियों को जीतने की शक्ति विश्वास से हो जाती है और दुष्टता का अंत करने का बल पैदा होता है। हिरण्यकशिपु के रूप में यह दुष्टता हमारे अपने मन की है, जिसे अपने भीतर भगवान नृसिंह का आह्वान करके ही दूर किया जा सकता है। 'नृसिंह जयंती' इसी संकल्प का पर्व है।
भक्ति व प्रेम के महान आचार्य देवर्षि नारदजी ने जब सदगुरू के रूप में प्रह्लाद को दीक्षा-शिक्षा दी, तब उसके जीवन में भगवदभक्ति व प्रेम का प्राकट्य हुआ था। अतः इस दिन संकल्प लें कि हम भी किन्हीं हयात ब्रह्मज्ञानी महापुरूष को खोजकर उनसे दीक्षा-शिक्षा ग्रहण करके, उनके बताये हुए मार्ग पर चल के प्रह्लादरूपी दृढ़ भक्ति के द्वारा अपने जीवन में भगवान का अवतरण करेंगे। अहंकार व बुराईरूपी हिरण्यकशिपु का नाश कर अपने हृदय को भगवदभक्ति व संतों के ज्ञान से प्रकाशित करेंगे।
स्रोतः लोक कल्याण सेतु, अप्रैल 2011, पृष्ठ संख्या 7, अंक 166
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