शनिवार, 21 मई 2011

आदर्श विद्यार्थी के पाँच लक्षण




आदर्श विद्यार्थी के पाँच लक्षण बताये गये हैं-
काकचेष्टा बकध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च।
स्वल्पाहारी ब्रह्मचारी विद्यार्थिपंचलक्षणम्।।
काकचेष्टाः जैसे कौआ हरेक चेष्टा में इतना सावधान रहता है कि उसको जल्दी पकड़ नहीं सकते, ऐसे ही विद्यार्थी को विद्याध्ययन के विषय मे हर समय सावधान रहना चाहिए। उसे समय व्यर्थ नहीं करना चाहिए। एक-एक क्षण का ज्ञानार्जन में सदुपयोग करना चाहिए।
बकध्यानः जैसे बगुला पानी में धीरे से पैर रखकर चलता है, उसका ध्यान मछली की ओर ही रहता है। ऐसे ही विद्यार्थी को खाना-पीना आदि सब क्रियाएँ करते हुए भी अपनी दृष्टि, ध्यान विद्याध्ययन की तरफ ही रखना चाहिए।
श्वाननिद्राः जैसे कुत्ता निश्चिंत होकर नहीं सोता, वह थोड़ी सी नींद लेकर फिर जग जाता है, नींद में भी सतर्क रहता है ऐसे ही विद्यार्थी को आरामप्रिय, विलासी होकर यथेच्छ नहीं सोना चाहिए, अपितु केवल स्वास्थ्य की दृष्टि से यथोचित सोना चाहिए।
स्वल्पाहारीः विद्यार्थी को उतना ही आहार लेना चाहिए जिससे आलस्य न आये, पेट याद न आये क्योंकि पेट दो कारणों से याद आता है, अधिक खाने से और भुखमरी से।
ब्रह्मचारीः विद्यार्थी को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। आश्रम से प्रकाशित 'दिव्य प्रेरणा-प्रकाश, निरोगता का साधन' एवं 'तू गुलाब होकर महक' आदि पुस्तकों के कुछ पन्ने रोज पढ़ने चाहिए व अपने जीवन को तदनुसार बनाने का प्रयत्न करना चाहिए। ये दो पुस्तकें बालकों के भावी जीवन को महानता के सदगुणों से भरने में सक्षम हैं।
स्रोतः लोक कल्याण सेतु, अप्रैल 2011, पृष्ठ संख्या 7, अंक 166
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