एक बच्चे को बाल्यावस्था से ही वैज्ञानिक बनने की लगन थी लेकिन उसके विकास में सबसे बड़ी बाधा थी उसकी गरीबी। उसकी माँ ने सोचा कि गरीबी के चलते उसके पुत्र की यह अभिलाषा कभी पूर्ण नहीं हो सकती। अतः वह अपने बच्चे को एक वैज्ञानिक के पास विज्ञान की शिक्षा के लिए ले गयी।
उस वैज्ञानिक ने बच्चे के हाथ में झाड़ू पकड़ायी और प्रयोगशाला की सफाई का कार्य सौंप दिया। बच्चे ने खूब लगनपूर्वक प्रयोगशाला की सफाई की और छोटी से छोटी चीज को भी सँभालकर साफ किया और उसे उसकी जगह पर रखा। वैज्ञानिक ने बच्चे की लगन को देखकर उसकी माँ से कहाः "इसे आप मेरे पास छोड़ दीजिये। इसमें वैज्ञानिक बनने के गुण हैं, एक दिन यह अवश्य ही वैज्ञानिक बनेगा।"
दक्षता, लगन व स्वच्छता ऐसे गुण हैं जिनसे किसी भी व्यक्ति में महानता की अभिवृद्धि होती है। वही बच्चा आगे चलकर प्रसिद्ध वैज्ञानिक थामस एल्वा एडिसन बना।
जो व्यक्ति किसी भी कार्य को बड़ी लगन, सावधानी, तत्परता एवं दक्षतापूर्वक करते हैं, वे अवश्य महान कार्य करने में सफल हो जाते हैं। यदि कार्य दक्षता के साथ एकमात्र ईश्वर की प्रसन्नता पाने का लक्ष्य हो, तब तो भगवत्प्राप्ति भी सुगम हो जाती है।
स्रोतः लोक कल्याण सेतु, अक्तूबर 2010, पृष्ठ संख्या 14, अंक 160
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सात्त्विक आहार और संयम लम्बी उम्र देता पर खा-खा-खा... चटोरापन और विकारी जीवन, तामसी जीवन छोटी उम्र में ही बुढ़ापा दे देता है।
जैसा संग वैसा रंग। विकारी लोगों के संग में रहेंगे तो विकारों की बात आयेगी। संतों के संग में रहेंगे तो भगवान की बात होगी।
भगवन्नाम जप में अदभुत शक्ति है और वह गुरूदीक्षा के द्वारा चेतन हो जाता है। भगवान ने तो गीध, अजामिल, शबरी को, गिने गिनाये को तारा लेकिन भगवान के नाम ने बेशुमार, अनगिनत खलों को उतार दिया।
पूज्य बापू जी
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जो जगत से सुखी होना चाहता है वह जगत से लेकर संतुष्ट होगा और जो जगदीश्वर में सुखी है वह देकर संतुष्ट होगा। कितना फासला है ! लेने वाला सब कुछ करेगा – मीठी वाणी, दाँव पेंच.... जो भी जगत से लेने की इच्छा से भरा है, वह जिस किसी से मिलेगा, कुछ न कुछ नाटकबाजी, कुछ न कुछ धोखेबाजी करके लेगा। ऐसा व्यक्ति बेईमान होता है, उस पर ज्यादा भरोसा नहीं हो पाता किंतु जो अपने-आप में संतुष्ट है, वह दूसरों को सुख, शांति, मधुरता देकर संतुष्ट होगा।
मनुष्य जीवन में ही स्वभाव सुधर सकता है। पशु योनि में बिगड़ भले जाये, सुधरता नहीं है।
पूज्य बापू जी
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