शनिवार, 4 दिसंबर 2010

भगवदभक्ति का रहस्य - स्वामी श्री रामसुखदास जी महाराज

भगवदभक्ति का रहस्य
स्वामी श्री रामसुखदास जी महाराज
भक्ति भक्त भगवंत गुरु चतुर नाम बपु एक।
इनके पद बंदन किएँ नासत बिघ्न अनेक।।

भक्ति का मार्ग बताने वाले संत 'गुरु', भजनीय 'भगवान', भजन करने वाला 'भक्त' तथा संतों के उपदेश के अनुसार भक्त की भगवदाकार वृत्ति 'भक्ति' है। ये नाम से चार हैं किंतु तत्त्वतः एक ही हैं।

जो साधक दृढ़ता के साथ भगवान के नाम का जप और स्वरूप का ध्यानरूप भक्ति करते हुए तेजी से चलता है, वही भगवान को शीघ्र प्राप्त कर लेता है।
इस भगवदभक्ति की प्राप्ति के अनेक साधन बताये गये हैं। उन साधनों में मुख्य हैं संत महात्माओं की कृपा और उनका संग। श्रीरामचरितमानस में कहा हैः

भक्ति सुतंत्र सकल सुख खानी।
बिनु सतसंग न पावहिं प्रानी।
(श्री रामचरित. उ.कां. 44.3)
भगति तात अनुपम सुखमूला।
मिलइ जो संत होइँ अनुकूला।।
(श्रीरामचरित. अर.कां. 15.2)

उन संतों का मिलन भगवत्कृपा से ही होता है। श्री गोस्वामी जी कहते हैं-
संत बिसुद्ध मिलहिं परि तेही।
चितवहिं राम कृपा करि जेही।
(श्रीरामचरित. उ.कां. 68.4)
...बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता।
...सतसंगति संसृति कर अंता।

असली भगवत्प्रेम का नाम ही भक्ति है। इस प्रकार के प्रेम की प्राप्ति संतों के संग से अनायास ही हो जाती है क्योंकि संत-महात्माओं के यहाँ परम प्रभु परमेश्वर के गुण, प्रभाव, तत्त्व, रहस्य की कथाएँ होती रहती हैं। भगवत्कथा अनेक जन्मों की अनंत पापराशि का नाश करने वाली एवं हृदय और कानों को अतीव आनंद देने वाली है। यज्ञ, दान, तप, व्रत, तीर्थ आदि बहुत परिश्रम-साध्य पुण्य-साधनों के द्वारा भी वह लाभ नहीं प्राप्त होता, जो कि सत्संग से अनायास ही हो जाता है, क्योंकि प्रेमी संत-महात्माओं के द्वारा कथित भगवत्कथा के श्रवण से जीव के पापों का नाश हो जाता है। इससे अंतःकरण अत्यन्त निर्मल होकर भगवान के चरणकमलों में सहज ही श्रद्धा-प्रीति उत्पन्न हो जाती है। भक्ति का मार्ग बताने वाले संत ही भक्तिमार्ग के गुरू हैं।
इस जीव को संसार के किसी भी उच्च से उच्च पद या पदार्थ की प्राप्ति क्यों न हो जाये, इसकी भूख तब तक नहीं मिटती, जब तक कि यह अपने परम आत्मीय भगवान को प्राप्त नहीं कर लेता, क्योंकि भगवान ही एक ऐसे हैं जिनसे सब तरह की पूर्ति हो सकती है। उनके सिवा सभी अपूर्ण हैं। पूर्ण केवल एक ही हैं और वे पूर्ण होते हुए भी सम्पूर्ण प्राणियों के प्रति बिना कारण ही प्रेम और कृपा करने वाले परम सुहृद हैं। साथ ही वे सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान भी हैं। कोई सर्वसुहृद तो हो पर सब कुछ न जानता हो, वह हमारे दुःख को न जानने के कारण उसे दूर नहीं कर सकता और यदि सब कुछ जानता हो पर सर्वसमर्थ न हो तो भी असमर्थता के कारण दुःख दूर नहीं कर सकता एवं सब कुछ जानता भी हो और समर्थ भी हो, तब भी यदि सुहृद न हो तो दुःख देखकर भी उसे दया नहीं आती, जिससे वह हमारा दुःख दूर नहीं कर सकता। किंतु भगवान में उपर्युक्त तीनों बातें एक साथ एकत्रित हैं।

स्रोतः लोक कल्याण सेतु, अक्तूबर 2010, पृष्ठ संख्या 7, अंक 160
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