बुधवार, 10 अगस्त 2011

चरित्र ही सच्ची सम्पत्ति



यजुर्वेद (23.15) में आता हैः
स्वयं वाजिँस्तन्वं कल्पयस्व।
'हे मानव ! शक्तिशालिन् ! अपने जीवन का निर्माण करो। अपने चरित्र को उन्नत बनाओ।'
पूज्य बापू जी कहते है- चरित्र की पवित्रता हर कार्य में सफल बनाती है। जिसका जीवन संयमी है, सच्चरित्रता से परिपूर्ण है उसकी गाथा इतिहास के पन्नों पर गायी जाती है।'
व्यक्तित्व का निर्माण चरित्र से ही होता है। बाह्यरूप से व्यक्ति ही सुंदर हो, निपुण गायक हो, बड़े से बड़ा कवि या वैज्ञानिक हो, चमक-दमक व फैशनवाले कपड़े पहनता हो परंतु यदि वह चरित्रवान नहीं है तो समाज में उसे सम्मानित स्थान नहीं मिल सकता। उसे तो हर जगह अपमान, अनादर ही मिलता है। चरित्रहीन व्यक्ति आत्मसंतोष और आत्मसुख से वंचित रहता है। कवि माघ ने कहा हैः 'दुर्बल चरित्र का व्यक्ति उस सरकंडे के समान है जो हवा के हर झोंके पर झुक जाता है।'
स्वामी शिवानंदजी कहा करते थेः 'मनुष्य-जीवन का सारांश है चरित्र। मनुष्य का चरित्र ही सदा जीवित रहता है। चरित्र का अर्जन नहीं किया गया तो ज्ञान का अर्जन भी नहीं किया जा सकता। अतः निष्कलंक चरित्र का निर्माण करें।'
चरित्रवान व्यक्ति के आस-पास आत्मसंतोष, आत्मशांति और सम्मान वैसे ही मँडराते हैं, जैसे कमल के इर्द-गिर्द भौंरे, मधु के इर्द-गिर्द मधुमक्खियाँ। चरित्र एक शक्तिशाली उपकरण है जो शांति, धैर्य, स्नेह, प्रेम, सरलता, नम्रता आदि दैवी गुणों को निखारता है। किसी भी नये स्थान पर जाने पर चरित्रवान व्यक्ति अपनी छाप, प्रभाव छोड़े बिना नहीं रहता। चरित्र उस पुष्प की भाँति है जो अपना सौरभ सुदूर देशों तक फैलाता है। महान विचार तथा उज्जवल चरित्रवाले व्यक्ति का ओज चुम्बक की भाँति प्रभावशाली होता है।
उस समय की बात है जब स्वामी विवेकानन्द अमेरिका गये हुए थे। वहाँ के लोगों के लिए उनके काषाय वस्त्र व उनका पहनावा कुतूहल का विषय बना हुआ था। एक दिन शिकागो शहर की सड़क पर वे पैदल जा रहे थे तभी पीछे आ रही एक अमेरिकन महिला ने व्यंग्य करते हुए अपने पुरुष साथी से कहाः "जरा इन महाशय की इस अजीब पोशाक को तो देखो !" विवेकानंद जी उस व्यंग्य को सुनकर रूक गये। पीछे मुड़कर उस महिला से बोलेः "देवी ! आपके देश में दर्जी सभ्यता के उत्पादक और कपड़े सज्जनता की कसौटी माने जाते हैं परंतु जिस देश से मैं आया हूँ, वहाँ कपड़ों से नही, मनुष्य के चरित्र से उसकी पहचान की जाती है।"
यह सुनकर उस महिला का शर्म सिर से झुक गया। व्यक्ति की महानता उसके कपड़ों से नहीं उसके चरित्र से होती है। विद्यार्थियों को अपने चरित्र पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
सुभाषचन्द्र बोस ने कहा थाः 'अगर कॉलेजी डिग्रियों के बाद भी मनुष्य में सच्चरित्रता, शांति, आध्यात्मिकता नहीं आयी तो इससे तो मैं अनपढ़ रहना पसंद करूँगा।'
स्वामी लीलाशाह जी भी कहते थेः "धन गया तो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो कुछ-कुछ गया परंतु चरित्र का नाश हुआ तो सब कुछ नष्ट हो गया। इसलिए बनाने जैसा और संभालने जैसा तो मात्र चरित्र ही है।'
चरित्र के बिना जीवन मृतक के समान है। अतः पवित्र और सदाचारी बनो। सत्संग का आश्रय लो, जीवन में लाकर चरित्रवान बनो।
स्रोतः लोक कल्याण सेतु, मई 2011, पृष्ठ संख्या 2, अंक 167
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