बुधवार, 10 अगस्त 2011

स्वावलम्बी बनो



पूज्य बापू जी
अपनी दिव्य संस्कृति भूलकर हम विदेशी कल्चर के चक्कर में फँस गये हैं। लॉर्ड मैकाले की कूटनीति ने भारत की शक्ति को क्षीण कर दिया है।
मैकाले जब भारत देश में घूमा तब उसने देखा कि भारत के संतों के पास ऐसी यौगिक-शक्तियाँ, योगविद्या व आत्मविद्या है, ऐसा मंत्र-विज्ञान है कि यदि भारत का एक नौजवान भी संतों से प्रेरणा पाकर उनके बताये मार्ग पर चल पड़ा तो ब्रिटिश शासन को उखाड़कर फेंक देने में सक्षम हो जायेगा।
इसलिए मैकाले ने सर्वप्रथम संस्कृत विद्यालयों और गुरुकुलों को बंद करवाया और अंग्रेजी स्कूल शुरू करवाये। हमारे गृह-उद्योग बंद करवाये और शुरू करवायीं फैक्टरियाँ।
पहले लोग स्वावलम्बी थे, स्वाधीन होकर जीते थे, उन्हें पराधीन बना दिया गया, नौकर बना दिया गयाष धीरे-धीरे विदेशी आधुनिक माल भारत में बेचना शुरु कर दिया गया। जिससे लोग अपने काम का आधार यंत्रों पर रखने लगे और प्रजा आलसी, पराश्रित, दुश्चरित्र, भौतिकवादी बनती गयी। इसका फायदा उठाकर ब्रिटिश हम पर शासन करने में सफल हो गये।
एक दिन एक राजकुमार घोड़े पर सवार होकर घूमने निकला था। उसे बचपन से ही भारतीय संस्कृति के पूर्ण संस्कार मिले थे। नगर से गुजरते वक्त अचानक राजकुमार के हाथ से चाबुक गिर पड़ा। राजकुमार स्वयं घोड़े से नीचे उतरा और चाबुक लेकर पुनः घोड़े पर सवार हो गया। यह देखकर राह से गुजरते लोगों ने कहाः"मालिक ! आप तो राजकुमार हो। एक चाबुक के लिए आप स्वयं घोड़े पर से नीचे उतरे ! हमें हुक्म दे देते !"
राजकुमारः "जरा-जरा से काम में यदि दूसरे का मुँह ताकने की आदत पड़ जायेगी तो हम आलसी, पराधीन बन जायेंगे और आलसी पराधीन मनुष्य जीवन में क्या प्रगति कर सकता है ! अभी तो मैं जवान हूँ। मुझमें काम करने की शक्ति है। मुझे स्वावलम्बी बनकर दूसरे लोगों की सेवा करनी चाहिए, न कि सेवा लेनी चाहिए। यदि आपसे चाबुक उठवाता तो सेवा लेने का बोझा मेरे सिर पर चढ़ता।"
हे भारत के नौजवानो ! संकल्प करो कि 'हम स्वावलम्बी बनेंगे।' नौकरों तथा यंत्रों पर कब तक आधार रखोगे ! हे भारत की नारी ! अपनी गरिमा भूलकर यांत्रिक युग से प्रभावित न हो ! श्रीरामचन्द्रजी की माता कौशल्यादेवी इतने सारे दास-दासियों के होते हुए भी स्वयं अपने हाथों से अपने पुत्रों के लिए पवित्र भोजन बनाती थीं। तुम भी अपने कर्तव्यों से च्युत मत होओ। किसी ने सच ही कहा है।
स्वावलम्बन की एक झलक पर।
न्यौछावर कुबेर का कोष।।
स्रोतः लोक कल्याण सेतु, मई 2011, पृष्ठ संख्या 12, अंक 167
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